मनुष्य स्वंय कुछ नहीं करता, भाव उस से सब कुछ करवाते हैं
फिर वो प्रेमिका को प्रति हों या फिर अपनी जन्म भूमि के प्रति
भाव सब कुछ कह जाते हैं।
अपनी जन्मभूमि को समर्पित ये भाव , जब कलम के माध्यम से निकलें तो वो कविता का रूप ले लेते हैं, मैने भी स्वयं कुछ नहीं किया, भाव मुझ से कहलवा गये।
अपनी मात्र भूमि पाडर को समर्पित ये कविता मे आप के समक्ष रखता हूं आशा करता हूं कि आप को अच्छी लगे गी।।
तुम वो नही कि अलफाज़
इकटठा कर तुम पर
कविता लिख सकूं
तुम वो भी नहीं कि तुम्हारी
तसवीर खींच लोगों को बता सकूं
कि ये हो तुम,
तुमहारी गोद से बहते ये झरने
तुम्हारी तारीफ कर सके
तुम वो भी नहीं,
ना ही तुम बगीचा हो कोई
कि जहाँ के खिले फूल तुम्हारा
मुकाबला कर सके,
न ही विशाल पेड़,
न ही महबूब कोई,
न आसमाँ,
न ही रंग कोई
तुम मौसम भी नहीं कोई
जो खुशी दे सके रूह को
तुम नीलम भी नहीं जिसकी
कीमत हो कोई
वो गुचछियाँ, वो जड़ी बूटीयाँ
जो तुम छिपाए बैठे हो अपनी कोख में
तुम वो भी नहीं मेरे,
तुम वे ऊँची-ऊँची चोटियों पे
सफेद चादर वाले ब्रफ भी नहीं,
जो ठँडक दे सके किसी मुसाफिर के दिल को,
न ही तुम चिनाब के नीले गहरे पानी हो
जो किसी प्यासे की प्यास भुजा सके,
न ही गरम पानी तता पानी के,
न ही किसी भगवान का घर
जो हर जगह है,
तुम तो पहले प्यार का अहसास हो
एक बार होता है जो,
और शरतें भी नहीं होती जिसमे
सुकून भी होता है
और दूर हो जाने का डर भी
नहीं होता जिसमें,
न कुछ खो जाने का डर
न ही कुछ पाने की खुशी
तुम वो फूल हो आँगन के
जिसमे मुरझाना नहीं सीखा
तुम एक अहसास हो, जो मरता नहीं कभी
तुम वो जगह हो कायनात की
जो सिर्फ खुशियाँ बिखेरे,
किसी हारे मुसाफिर के दिल में य फिर मेरे
तुम# पाडर हो मेरे, हाँ
तुम पाडर हो मेरे ।।।
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धन्यवाद
आशीष चौहान
Very nice, soothing background music and very calmly narrated. Well done Ashish
Achi Kavita Hai.
Thank you very much bro
Nice
Nice.
[…] Read my another poem “Tum Paddar ho Mere” on Paddar here on this link. […]
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